Bonds In India | Electoral Bonds Biggest Scam History

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Election bond scam

Electoral Bonds के द्वारा आपका पैसा लूट लिया गया है  हमारे देश के हर नागरिक का पैसा लूट लिया गया है। आज़ाद भारत के इतिहास का शायद ये सबसे बड़ा घोटाला है आप सोच सकते है कि मै बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा हू लेकिन ऐसा नही है। बात यह है कि यह चुनावी बॉन्ड घोटाला कोई अकेला घोटाला नहीं है घोटालो की लिस्ट इतनी लंबी है कि आप गिनते-गिनते थक जाएंगे इतना ही नही यह देश का सबसे बड़ा जबरन वसूली रैकेट है।यह 2017 मे था जब मोदी सरकार ने इस चुनावी योजना की शुरुआत की और इसे राजनीतिक दलों के लिए रिश्वत इकट्ठा करने का एक साधन बना दिया। “वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज राजनीतिक दलो के वित्तपोषण के लिए चुनावी बांड की रूपरेखा की घोषणा की।” इस योजना के तहत प्रत्येक कार्य जनता से छिपाया जाएगा। कौन सी कंपनिया किस पार्टी को कितनी रकम देती है। इसकी जानकारी नागरिकों को नही थी जो लोग उस वक्त इस खबर पर नजर रख रहे थे उन्हें समझ आ गया था कि इससे कोई बड़ा वित्तीय घोटाला हो सकता है। कंपनियो को यह बताने की ज़रूरत नही होगी कि वे किन राजनीतिक दलो को फंडिंग करेंगी। 7 साल बाद इस योजना को असंवैधानिक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद देना चाहिए। और इन 7 सालो में जो भी घोटाले हुए उनका अब धीरे-धीरे खुलासा हो रहा है

Know Electoral Bond

हाल ही में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में गृह मंत्री अमित शाह ने Electoral Bonds  को लेकर खुलेआम झूठ बोला था उन्होंने कहा कि बेचे गए कुल बांड 200 अरब रुपये के थे जिसमे से भाजपा को केवल 60 अरब रुपये मिले। तो शेष ₹ 140 बिलियन किसे मिले “बीजेपी को बांड के माध्यम से लगभग ₹60 बिलियन मिले। बेचे गए कुल बांड लगभग ₹200 बिलियन थे। तो ₹140 बिलियन मूल्य के बांड कहाँ गए?” उनके साथ एक टीवी न्यूज एंकर बैठी थी जिसने चुप रहना ही बेहतर समझा। या तो वह भूल गए या उनमें अमित शाह की तथ्य-जांच करने की हिम्मत नहीं थी।

आंकड़ों के अनुसार जारी किए गए कुल बांड ₹200 बिलियन के नहीं बल्कि ₹127 बिलियन के थे। जिन्हें अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 के बीच बनाया गया। इस ₹120 बिलियन में से बीजेपी को ₹60 बिलियन मिले। यह लगभग 47.5% है इसी अवधि के दौरान सूची में दूसरे स्थान पर रहने वाली पार्टी कांग्रेस थी जिसे ₹16 बिलियन के बांड मिले। यह 12.6% है ₹12 बिलियन के साथ बीआरएस चौथे स्थान पर था। 7 अरब रुपए के साथ बीजेडी पांचवें 6 अरब रुपए के साथ डीएमके छठे 3 अरब रुपए के साथ वाईएसआर 2 अरब रुपए के साथ RJD 1.5 अरब रुपए के साथ शिव सेना और अन्य पार्टियां एनसीपी सभी हैं। लगभग ₹300 से ₹700 मिलियन मिले। इस सूची को देखने के बाद कई भाजपा राजनेता और उनके भुगतान वाले प्रभावशाली लोग यह बहाना बनाते है कि भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है जिसमें 300 से अधिक सांसद कई विधायक और हजारों पार्टी कार्यकर्ता है।

इसलिए उन्हें इतना पैसा मिलना उचित होना चाहिए। और अगर प्रति सांसद मिलने वाले पैसे का अनुपात निकाला जाए तो बीजेपी का ये अनुपात बाकी पार्टियों से कम है उनका दावा है कि इसका मतलब है कि बीजेपी अन्य पार्टियों जितनी बुरी नहीं है जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था यह घोटाला रिश्वत के बदले व्यावसायिक अवसर प्रदान करने के बारे में है। या रिश्वत न मिलने की स्थिति में ईडी उनके खिलाफ कार्रवाई करे। अमित शाह के बेबाक झूठ को भाजपा नेता आर.पी. सिंह ने दोहराया। “कुल मिलाकर ₹ 200 बिलियन मूल्य के चुनावी बांड थे। इसमें से ₹60 बिलियन बीजेपी के पास गए और ₹140 बिलियन विपक्ष के पास गए।” “झूठ बोलो, और झूठ बोलते रहो।” और फिर एएनआई , दैनिक जागरण, इंडिया टुडे, उन्होंने बिना जाँचे इस झूठ को प्रकाशित किया। झूठ पकड़ने के बारे में भूल जाइए इंडिया टुडे की हेडलाइन में बात की गई अमित शाह ने विपक्ष पर हमला बोला। और फिर इन संस्थाओं को आश्चर्य होता है कि उन्हें सरकार की कठपुतली मीडिया क्यों कहा जाता है। इसलिए धोखाधड़ी के विवरण में जाने से पहले आइए समझें कि ये चुनावी बांड कैसे काम करते थे?

Electoral Bond Misused 

जब यह Electoral Bonds  योजना शुरू की गई तो एक पत्रकार थे जिन्होंने इसकी विस्तार से जांच करने का फैसला किया। और इसे परखने के लिए उन्होंने दो चुनावी बांड खरीदे ये पत्रकार थी पूनम अग्रवाल वह एसबीआई की संसद शाखा में गईं और 5 अप्रैल और 9 अप्रैल 2018 को उन्होंने दो चुनावी बांड खरीदे। दोनों की कीमत ₹1,000 प्रत्येक थी। वह उस समय क्विंट मीडिया ऑर्गनाइजेशन के लिए काम कर रही थी। न ही इसमें कोई अन्य विवरण दिया गया कि इसे किसने खरीदा। दोनों बांड बिलकुल एक जैसे लग रहे थे। “तारीख के अलावा कोई अंतर नहीं है।

यहां लाल रंग से लिखा है। यहां 5 अप्रैल लिखा है और यहां 9 अप्रैल लिखा है। इन दोनों चीजों के अलावा बांड में कोई अंतर नहीं है।” लेकिन जब उसने एक बांड को फोरेंसिक परीक्षण के लिए भेजा तो पता चला कि हर बांड में एक गुप्त अल्फ़ान्यूमेरिक नंबर होता है। यह गुप्त नंबर केवल बैंगनी प्रकाश में ही दिखाई देता था। ये चौंकाने वाली बात थी क्योंकि इस तथ्य से मोदी सरकार का एक और झूठ सामने आ गया सरकार दावा कर रही थी कि चुनावी बांड खरीदने वाले किसी भी व्यक्ति की पहचान नहीं की जाएगी उनकी पहचान छिपाई जाएगी। किसी को पता नहीं चलेगा कि यह बांड किसने खरीदा। जब मिस अग्रवाल ने यह साबित कर दिया तो वित्त मंत्रालय को खुले तौर पर स्वीकार करना पड़ा कि बांड पर गुप्त अद्वितीय संख्याएं थी।

लेकिन उन्होंने ये भी दावा किया कि ये नंबर सिर्फ एक सिक्योरिटी फीचर था और इस नंबर के माध्यम से दान को ट्रैक नहीं किया जा सकेगा और खरीदार की पहचान भी सुनिश्चित नही की जा सकेगी। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद की बहस में इस बिंदु को बचाव के रूप में इस्तेमाल किया था। उन्होंने विपक्षी दलों को आश्वस्त करते हुए कहा कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है किसी को भी दानकर्ता की पहचान या दान के स्रोत का पता नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार इतनी दयालु है कि कानून बनाते समय विपक्ष के बारे में भी सोचते है लेकिन अंदाज़ा लगाओ कि क्या है? यह मोदी सरकार द्वारा उगला गया एक और झूठ था।

Govt. Agency Action

जैसा कि हम पहले से ही जानते है ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियां सरकार की कठपुतली बन गई है। इससे तीन बाते साफ हो गईं सबसे पहले जनता को इस बात से पता चल गया था कि किस राजनीतिक दल को कितना राजनीतिक चंदा मिलता है कौन सी कंपनियां राजनीतिक चंदा देती है और कितना भुगतान करती है। नागरिको को कोई जानकारी नही मिलनी चाहिए थी। दूसरे विपक्षी राजनीतिक दलो को यह नही पता होना चाहिए था कि कौन सी कंपनियो ने भाजपा को कितना चंदा दिया। उनको मिलने वाले दान के बारे मे उन्हें ही पता होता और तीसरा भाजपा सरकार के पास हर चीज़ का पता लगाने का साधन था। राजनीतिक चंदा कौन दे रहा है कितना दे रहा है और किन राजनीतिक दलों को दे रहा है।

सरकार के पास हर दान देने वाली कंपनी के बारे में जानकारी थी। मोदी सरकार के लिए यह विपक्ष के खिलाफ एक गुप्त हथियार बन गया और अधिकांश विपक्षी दलो को हाल तक इसके बारे मे कुछ भी पता नही था। 15 फरवरी को जब सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को असंवैधानिक घोषित किया  इस योजना के खिलाफ उनकी ओर से वकील प्रशांत भूषण बहस कर रहे थे तो ये कुछ संगठन और लोग है जिन्हें हमें धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने इस घोटाले का खुलासा किया। सुप्रीम कोर्ट को इस योजना के बारे में बहुत कुछ कहना था लेकिन दो बातें बेहद महत्वपूर्ण थीं। सबसे पहले नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि राजनीतिक दलो को कितना चंदा दिया गया है और यह चंदा कौन देता है। यह चुनावी बांड योजना नागरिको के सूचना के अधिकार के ख़िलाफ़ थी। और दूसरा सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि इस योजना का इस्तेमाल रिश्वत लेने के लिए कैसे किया गया। अदालत ने कहा कि इन योगदानो को पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। कंपनियां बदले मे कुछ लाभ पाने के लिए दान कर रही है। इन सबके आधार पर कोर्ट ने एसबीआई को डेटा जारी करने का निर्देश दिया। मुझे अपना हिसाब-किताब दिखाओ। आपने देश को जो नुकसान पहुंचाया है उसका हिसाब दो। शुरुआत में एसबीआई ने यह बहाना बनाया कि डेटा एकत्र करने में 3 महीने लगेंगे इसका खुलासा चुनाव के बाद ही किया जा सकता है।

लेकिन कोर्ट ने  नरमी दिखाने से इनकार कर दिया और 2 दिन के भीतर डेटा जारी कर दिया गया आख़िरकार ये डेटा चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ ECI की वेबसाइट पर प्रकाशित डेटा 2 सूचियों के रूप में है। पहली सूची हमें बताती है कि किन कंपनियों और व्यक्तियों ने चुनावी बांड खरीदे और उनके बांड का मूल्य कितना है। और दूसरी सूची हमें बताती है कि किन राजनीतिक दलों ने चुनावी बांड बनाए और उन्हें कितना मिला। लेकिन एसबीआई ने चालाकी दिखाते हुए गुप्त नंबरों का खुलासा नहीं किया। उनके बिना दोनों सूचियों को सटीक रूप से जोड़ना संभव नहीं था। एक बार फिर  उन्होंने जनता से जानकारी छिपाने की कोशिश की।

चुनिंदा डेटा प्रकाशित करने पर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को फटकार लगाई इसने एसबीआई को 21 मार्च तक पूरा डेटा प्रकाशित करने का निर्देश दिया। देश के अन्य राजनीतिक दलों के पास उन दानदाताओं की सूची थी जिन्होंने उन्हें चंदा दिया। उन्हें प्राप्त दान के स्रोत के बारे में पता था। ऐसे में 10 राजनीतिक पार्टियों ने अपनी लिस्ट लोगों के सामने उजागर की सबसे पहले सत्ता में राजनीतिक दल यह भाजपा की केंद्र सरकार या राज्य सरकार बनाने वाली कोई अन्य पार्टी हो सकती है। दूसरा, बड़ी कंपनियाँ जिन्होंने Electoral Bonds  के माध्यम से राजनीतिक चंदा दिया।

Electoral BondsHow Scam Work

लेकिन क्या आप जानते है कि उपर दी गई सभी कंपनियो को गुजरात के नगर अधिकारी द्वारा कई प्रोजेक्ट दिए गए थे। वडोदरा, राजकोट, सूरत, अहमदाबाद की गांधीनगर मेट्रो रेल परियोजना  सौंपी गई। ये व्यवसाय के अवसर थे  लिस्ट के मुताबिक जनवरी से जुलाई 2023 के बीच इस कंपनी ने 9 करोड़ रुपये के Electoral Bonds  खरीदे। यदि आप उनके द्वारा खरीदे गए सभी चुनावी बांडों को जोड़ दे तो यह ₹12 बिलियन से अधिक है। बदले में उन्हें क्या मिला? जून 2019 में तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने कालेश्वरम  सिंचाई परियोजना का उद्घाटन किया।

फरवरी 2024 में CAG ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें पता चला कि शुरुआत में इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 810 अरब रुपये थी लेकिन अब इसकी कीमत ₹14.7 ट्रिलियन से भी ज्यादा है। एक अन्य रिपोर्ट मे सीएजी ने कहा कि मेघा इंजीनियरिंग को चार पैकेजो के लिए 51.80 अरब रुपये अधिक  भुगतान किया गया। इसमें पंप , मोटर और उपकरण की आपूर्ति और कमीशनिंग शामिल थी। सीएजी ने यह भी कहा कि मेघा इंजीनियरिंग के अलावा एलएंडटी और नवयुग इंजीनियरिंग जैसे अन्य ठेकेदार भी थे।

यदि हम उन सभी की संयुक्त राशि को देखें तो इन ठेकेदारों को विस्तारित अनुचित लाभ में कम से कम ₹75 बिलियन प्राप्त हुए थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार इन परियोजनाओ को सौंपने मे जल्दबाजी में लग रही थी। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट प्राप्त होने से पहले ₹250 बिलियन की 17 विभिन्न परियोजनाएं प्रदान की गईं। इतना ही नहीं, अक्टूबर 2020 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस प्रोजेक्ट को लेकर लाल झंडे उठाए थे इसी तरह सरकार को बहुत पैसा company के द्वारा दिया गया था। आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी कैसी लगी आप हमे comment Box मे बताए।


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