JRD Tata Empire शुरू हुए 153 साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी यह कंपनी समय के साथ लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही है अभी यूं तो इस कंपनी को इस मुकाम तक पहुंचने में टाटा परिवार के बहुत से अलग-अलग लोगों का योगदान रहा है लेकिन उन सभी में जमशेदजी टाटा का योगदान सबसे ज्यादा खास माना जाता है क्योंकि उन्होंने इस महान कंपनी की नींव रखी थी उनका जन्म 3 मार्च 1839 के दिन गुजरात के छोटे से कस्बे नवसारी में रहने वाले एक पारसी परिवार में हुआ था
उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई नवसारी के ही एक स्कूल से की और फिर उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई के अलफिस्तान कॉलेज में एडमिशन ले लिया पढ़ाई के साथ ही जमशेदजी ने सिर्फ 14 साल की उम्र से ही अपने पिता के बिजनेस में भी उनका हाथ बताना शुरू कर दिया था और फिर साल 1858 में अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद उन्होंने अपने पिता के बिजनेस को पूरी तरह से ज्वाइन कर लिया था इस तरह से लगभग 10 साल अपने पिता के साथ काम करने के बाद से जमशेदजी ने सन 1868 में 21000 रुपए की पूंजी लगाकर अपनी खुद की एक कंपनी शुरू की जहां अपने बिजनेस की शुरुआत उन्होंने टेक्सटाइल कारोबार से की थी और आपकी जानकारी के लिए बता दे। कि जमशेदजी की इस कंपनी को ही आज हम लोग टाटा के नाम से जानते है
Story Of Jrd Ratan Tata
असल में टाटा कंपनी की कामयाबी के लिए JRD Tata के योगदान को सिर्फ इतना महत्वपूर्ण नहीं माना जाता कि उन्होंने इस कंपनी की शुरुआत की थी बल्कि उनके योगदान को इसलिए इतना महत्व दिया जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन काल में चार ऐसे बड़े काम किए थे जो न सिर्फ टाटा कंपनी के फ्यूचर के लिए फायदेमंद साबित हुए
बल्कि वह भारत में भी एक रिवॉल्यूशन लेकर आए यह कारनामे उस समय करके दिखाए थे जब हमारा भारत भी आजाद नही हुआ था तो एक-एक करके हम जमशेदजी के उन चारों अचीवमेंट के बारे में जानते हैं जिनकी मदद से उन्होंने टाटा को देश की सबसे बड़ी कंपनी बनाने की नींव रखी थी
First Steel Plant of india
जमशेदजी टाटा ने अपने करियर की शुरुआत मे ही दुनिया के कई देशों का दौरा किया था और दुनिया घूमने के बाद उन्हें यह चीज बहुत पहले ही समझ आ गई थी कि किसी भी देश में इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन लाने के लिए सबसे पहले जरूरी चीज उसे देश के अंदर स्टील मैन्युफैक्चरिंग प्लांट को बनाना होता है इसीलिए उन्होंने भारत के अंदर एक स्टील प्लांट बनाने का सपना अपनी यंग Age में ही देख लिया था साल 1882 के दौरान जमशेदजी ने एक फेमस जियोलॉजिस्ट की रिपोर्ट पड़ी और इस रिपोर्ट से उन्हें पता चला कि नागपुर मे कुछ किलोमीटर की दूरी पर चंदा जिला में आयरन और रिजर्व मौजूद है और फिर यह रिपोर्ट पढ़ते ही उन्हें स्टील प्लांट बनाने का सपना याद आ गया
जो कि उन्होंने सालों पहले देखा था अब जो की स्टील बनाने के लिए आयरन ओर के अलावा कोयला व पानी जैसी दूसरी भी चीजों की जरूरत पड़ती है ऐसे में जमशेदजी ने जब उस जगह पर मौजूद कुल रिजर्व की गहराई की जांच करवाई तो फिर उन्हें पता चला कि वह कोयला स्टील मैन्युफैक्चरिंग के लिए बिल्कुल भी सूटेबल नहीं था इसके अलावा उस जगह पर स्टील प्लांट बनाने में और भी बहुत सी टेक्निकल प्रॉब्लम सामने आई जिसके चलते उसे समय जमशेदजी को अपना यह आइडिया ड्राप करना पड़ा हालांकि जमशेदजी ने अभी भी हिम्मत नही हारी थी और अपने अंदर उन्होंने यह ठान रखा था कि वह एक न एक दिन भारत में स्टील प्लांट जरुर लगाएंगे इसके बाद से साल 1899 में जब उनकी उम्र 60 साल हो चुकी थी तब एक बार फिर से उन्होंने कुछ रिपोर्टर्स पड़ी कि भारत में ऐसी और भी कई सारे जगह मौजूद हैं जहां पर आयरन और कोयला मिलने के चांसेस काफी ज्यादा है और अगर उन जगहों पर ठीक तरह से खोजबीन करके काम किया जाए तो भारत के अंदर भी स्टील मैन्युफैक्चरिंग की जा सकती है
और फिर दोबारा यह रिपोर्ट पढ़ते ही जमशेदजी एक बार फिर से हरकत में आ गए और अपने सपने को पूरा करने के लिए वे तुरंत ही लंदन चले गए दरअसल अपने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने से पहले वह ब्रिटिश सरकार से उनकी सहमति व हेल्प लेना चाहते थे इसीलिए लंदन जाकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भारत में एक स्टील प्लांट बनाने के अपने उस प्लान के बारे में बताया और जैसा कि उन्होंने सोचा था ब्रिटिश सरकार को उनका वह प्लान काफी पसंद आ गया और उनकी तरफ से जमशेदजी को यह काम करने की पूरी सहमति दे दी गई इसके बाद से जमशेदजी टेक्निकल सपोर्ट लेने के लिए लंदन से सीधा अमेरिका चले गए असल में इस बार वह अपने सपने को किसी भी कीमत पर पूरा करना चाहते थे
और उनके इस प्रोजेक्ट में कोई रुकावट ना आए इसीलिए वह हर एक चीज में बेस्ट लोगों की ही मदद ले रहे थे अमेरिका जाकर उन्होंने चार्ल्स वर्ल्ड नाम के एक जियोलॉजिस्ट से मुलाकात की और उन्हें भारत में रिसर्च व सर्वे करने के लिए राजी कर लिया इसके बाद से कई सालों तक भारत की अलग-अलग जगह पर रिसर्च और सर्वे किए गए ताकि कैसी जगह को खोजा जा सके जो की स्टील प्लांट बनाने के लिए पूरी तरह से सूटेबल हो और फिर लंबे समय तक खोजबीन करने के बाद आखिरकार वह जगह मिली गई जहां भारत का पहला स्टील प्लांट यानी कि टाटा स्टील बनाया गया और दोस्तों आज हम लोग उसी जगह को जमशेदपुर के नाम से भी जानते हैं जो कि भारत का एक फेमस शहर भी है और इस शहर का नाम जमशेदपुर भी जमशेदजी टाटा के ही नाम पर रखा गया है
Indian Institute of science
जमशेदजी टाटा एजुकेशन के महत्व को बहुत अच्छी तरह से समझते थे इसीलिए भारत के अंदर शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए रिसर्च यूनिवर्सिटी खोलना चाहते थे और अपने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उन्होंने बाकायदा एक अलग टीम भी बनाई हुई थी जो कि सिर्फ इसी प्रोजेक्ट पर ही काम करती थी जमशेदजी ने यूनिवर्सिटी बनाने का प्रपोजल ब्रिटिश सरकार के सामने भी रखा लेकिन अंग्रेजों की तरफ से उन्हें उनके प्रोजेक्ट के लिए कोई पॉजिटिव फीडबैक नहीं मिला दरअसल ब्रिटिश सरकार का मानना था
कि भारत में ऐसे लोग ना के बराबर थे जो की हायर एजुकेशन पाना चाहते थे और अगर कोई व्यक्ति हायर एजुकेशन प्राप्त भी कर ले तो फिर उसके लिए भारत में नौकरी या फिर रोजगार के अवसर नही थे लेकिन दूसरे तरफ जमशेदजी को यह पूरा यकीन था कि एक न एक दिन भारत में इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन जरूर आएगा और जब ऐसा होगा तो इंडस्ट्री को पढ़े-लिखे लोगों की जरूरत पड़ेगी इसीलिए उन्होंने कभी भी हार नही मानी और वह अपने सपने को पूरा करने के लिए लगातार प्रयास करते रहे अब उनके जीते जी तो नहीं लेकिन उनके मरने के बाद ब्रिटिश सरकार ने 1909 में जमशेदजी कि उसे यूनिवर्सिटी बनाने के प्रपोजल को स्वीकार कर लिया इसके बाद से जमशेदजी के और सपने को पूरा करते हुए बेंगलुरु शहर के अंदर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस नाम की एक रिसर्च यूनिवर्सिटी स्थापित की गई जो कि आज भी भारत के टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट मानी जाती है
Taj Mahal Palace Hotel
जमशेदजी ने अपनी लाइफ में दुनिया के बहुत से देश की यात्राएं की थी और यह विदेशी यात्राएं करके ही उन्हें टूरिज्म के फील्ड और देश के इकोनॉमी में इसके महत्व के बारे में पता चला था उन्होंने गौर किया तो पाया कि भारत के अंदर एक्सप्लोर करने के लिए तो बहुत कुछ था लेकिन फिर भी विदेशी टूरिस्ट भारत में ना के बराबर आते थे।
जमशेदजी को यह समझने में ज्यादा समय नहीं लगा कि विदेशी टूरिस्ट भारत में इसलिए नहीं आते थे क्योंकि उस समय भारत के अंदर एक भी ढंग का होटल मौजूद नहीं था और इसी समस्या को हल करने वह भारत में विदेशी टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने आलीशान होटल की एक चेन बनाने का निर्णय लिया और इस तरह से जमशेदजी द्वारा मुंबई मे ताजमहल पैलेस होटल को बनाने के लिए रखी गई जिसको आज भी भारत के सबसे शानदार और आलीशान होटल में शुमार किया जाता है
Hydroelectric Plant
साल 1903 में जमशेदजी ने जब अमेरिका की यात्रा की थी तो वहां वे अमेरिका के नियाग्रा फॉल्स पावर प्लांट को देखकर उसे काफी प्रभावित हुए और उसे देखते ही उन्होंने यह तय कर लिया कि वह भारत में भी एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट बनाएंगे दरअसल उस समय नई-नई बन रही फैक्ट्री और टेक्सटाइल मिल्स की वजह से मुंबई के अंदर पॉल्यूशन काफी ज्यादा बढ़ गया था
ऐसे में मुंबई को पॉल्यूशन से बचाने वह भारत को एनर्जी का एक रिन्यूएबल सोर्स देने के लिए उन्होंने मुंबई में एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट बनाने के प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया लेकिन यह जमशेदजी का दुर्भाग्य ही रहा कि इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से पहले ही उनका देहांत हो गया और फिर उनके जाने के बाद टाटा के द्वारा उनका यह सपना पूरा किया गया आज टाटा ग्रुप की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक माने जाने वाली टाटा पावर कंपनी जमशेदजी के इस प्रोजेक्ट के ही आधार पर स्थापित की गई थी
उस के बाद रतन टाटा के दोबारा भारत को बनाने में भी काफी योगदान दिया गया जब उन्हें यह कमान सौंप गई थी उस वक्त कंपनी बुरे दौड़ से गुजर रही थी लेकिन इससे मुंह मोड़ने के बजाय रतन टाटा ने अपनी काबिलियत के दम पर नेल्को कंपनी को न सिर्फ इस झटके से वापिस लाया बल्कि 20% तक हिस्सेदारी भी बढ़ाने में सफल रहे हालांकि इमरजेंसी और आर्थिक मंदी से कंपनी को काफी नुकसान हुआ था। फिर 1977 में टाटा को यूनियन की हड़ताल का सामना करना पड़ा जिसके चलते बाद में Nelco कंपनी बंद करनी पड़ी थी। अब हम लोग रतन टाटा की कंपनी लिस्ट के बारे में बात कर लेते हैं कुछ महीने बाद ही रतन टाटा को कपड़ा मिल की जिम्मेदारी दे दी गई यह कंपनी भी उस समय घाटे मे थी। आखिर कार इसे भी बंद करना पड़ा था लेकिन रतन टाटा ने कभी हार नहीं मानी कहा जाता है कि रतन टाटा कंपनी बंद नहीं करना चाहते थे
लेकिन मजबूरी में यह फैसला लेना पड़ा अब भले ही कंपनियों की कमांडो दी गई थी उन्हें बंद करना पड़ा लेकिन इस बीच रतन टाटा की काबिलियत उनके परिवार को समझ आ गई थी इतने बुरे हालातो में भी उन्होंने कंपनी को काफी हद तक ऊपर उठाया। साल 1981 में रतन टाटा को टाटा इंडस्ट्रीज के उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा कर दी उस समय तक इनके पास ज्यादा अनुभव नहीं था इसलिए विरोध भी हुआ यानी यह भी उनके लिए मुश्किल दौड़ था लेकिन रतन टाटा तो वाकई अनमोल रतन थे उन्होंने हार नहीं मानी और आगे बढ़ते गए
Conclusions of topics
साल 1991 में रतन टाटा को टाटा इंडस्ट्रीज पर इसकी अन्य कंपनियों के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई इसके बाद ही टाटा ग्रुप हमेशा आगे बढ़ता गया इनके अध्यक्षता में टाटा ग्रुप ने अपने कई बड़े प्रोजेक्ट स्थापित किया और देश ही नहीं बल्कि दुनिया में भी उन्होंने टाटा ग्रुप को नई पहचान दिलाई रतन टाटा ने दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो बनाई रतन टाटा के निर्देशन में कंपनी ने महंगी गाड़ियों में से एक जगुआर , लैंड रोवर का अधिग्रहण भी किया और कार्य भी बने
साथ ही रतन टाटा ने दुनिया की सबसे सस्ती कार भी बनाई इसके बारे में लोगों ने कभी सोचा भी नहीं था यानी लाख रुपए मे कार 🚗 लेने के सपने को भी रतन टाटा ने पूरा कर दिया। 28 दिसंबर 2012 को रतन टाटा टाटा ग्रुप के सभी कार्यकारी जिम्मेदारी से रिटायर हो गए थे इसके बाद साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप गई हालांकि रतन टाटा रिटायरमेंट के बाद भी एक्टिव है और काम कर रहे हैं रतन टाटा ने अपने 21 साल के कार्यकाल में कंपनी को उस शिखर पर पहुंचा दिया जहां जाने के लोग सपने देखते है कंपनी की वैल्यू 50 गुना बढ़ा दी थी हमारे द्वारा आपको जानकारी कैसी लगी आप हमे comment Box मे बताएं